Tuesday 26 May 2020

यादें बेटीयों की

अक्सर एक याद आंखों से बहती है,
वो याद बचपन की फिर हर लड़की की आंखों में झलकती है ।
पिता से हर ख्वाहिश पुरी होने पर वह  कीतना चहकती है, हर पिता को बेटी ने मांगी हुई चिज़ पुरी करने की जिद जो होती है ।

फिर वो लाड़ प्यार में जाने कब बड़ी हो जाती है ,कभी जो चेहरा मुरझा जाए उसका,तो पिता से ‌ही फिर हंसी लौट आती हैं ,जाने कब बेटी बड़ी हो जाती हैं

देखते ही देखते फिर विदाई हो जाती है और बेटी पराई हो जाती हैं
फिर उसे न‌‌ये रिश्तों की पहचान हो जाती हैं ,याद फिर भी मगर उन दिनों की बहुत आती है , बेटी भी कितने जल्दी पराई हो जाती है ।

बचपन वो किलकारी उसकी मायके में ही कहीं गुम हो जाती हैं , बेटी फिर बहु बन जाती है सबको साथ लेकर चलने वाली कहीं कहीं खुद अकेली पड़ जाती हैं , जाने कब बेटी बड़ी हो जाती हैं ।

बहु से फिर मां का सफर शुरू हो जाता है कितना कठीन उसका सफर होता है मायके से पराई ससुराल में कहीं सहमी सी वह अपने घर में भी परायों की तरह ना इधर की ना उधर की, बेटी जाने कब बड़ी हो जाती हैं ।

No comments:

Post a Comment